Thursday, October 3, 2019

02-10-2019 प्रात:मुरली

02-10-2019        प्रात:मुरली        ओम् शान्ति       "बापदादा"      मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम सबकी आपस में एक मत है, तुम अपने को आत्मा समझ एक बाप को याद करते हो तो सब भूत भाग जाते हैं''
प्रश्नः- पद्मापद्म भाग्यशाली बनने का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर:- जो बाबा सुनाते हैं, उस एक-एक बात को धारण करने वाले ही पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हैं। जज करो बाबा क्या कहते हैं और रावण सम्प्रदाय वाले क्या कहते हैं! बाप जो नॉलेज देते हैं उसे बुद्धि में रखना, स्वदर्शन चक्रधारी बनना ही पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है। इस नॉलेज से ही तुम गुणवान बन जाते हो।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप, अंग्रेजी में कहा जाता है स्प्रीचुअल फादर। सतयुग में जब तुम चलेंगे तो वहाँ अंग्रेजी आदि दूसरी कोई भाषा तो होगी नहीं। तुम जानते हो सतयुग में हमारा राज्य होता है, उसमें हमारी जो भाषा होगी वही चलेगी। फिर बाद में वह भाषा बदलती जाती है। अभी तो अनेकानेक भाषायें हैं। जैसा-जैसा राजा वैसी-वैसी उनकी भाषा चलती है। अब यह तो सब बच्चे जानते हैं, सब सेन्टर्स पर भी जो बच्चे हैं उनकी है एक मत। अपने को आत्मा समझना है और एक बाप को याद करना है ताकि भूत सब भाग जाएं। बाप है पतित-पावन। 5 भूतों की तो सबमें प्रवेशता है। आत्मा में ही भूतों की प्रवेशता होती है फिर इन भूतों अथवा विकारों का नाम भी लगाया जाता है देह-अभिमान, काम, क्रोध आदि। ऐसे नहीं कि सर्वव्यापी कोई ईश्वर है। कभी भी कोई कहे कि ईश्वर सर्वव्यापी है तो कहो सर्वव्यापी आत्मायें हैं और इन आत्माओं में 5 विकार सर्वव्यापी हैं। बाकी ऐसे नहीं कि परमात्मा सर्व में विराजमान है। परमात्मा में फिर 5 भूतों की प्रवेशता कैसे होगी! एक-एक बात को अच्छी रीति धारण करने से तुम पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हो। दुनिया वाले रावण सम्प्रदाय क्या कहते हैं और बाप क्या कहते है, अब जज करो। हरेक के शरीर में आत्मा है। उस आत्मा में 5 विकार प्रवेश हैं। शरीर में नहीं, आत्मा में 5 विकार अथवा भूत प्रवेश होते हैं। सतयुग में यह 5 भूत नहीं हैं। नाम ही है डीटी वर्ल्ड। यह है डेविल वर्ल्ड। डेविल कहा जाता है असुर को। कितना दिन और रात का फ़र्क है। अभी तुम चेन्ज होते हो। वहाँ तुम्हारे में कोई भी विकार, कोई अवगुण नहीं रहता। तुम्हारे में सम्पूर्ण गुण होते हैं। तुम 16 कला सम्पूर्ण बनते हो। पहले थे फिर नीचे उतरते हो। इस चक्र का अभी मालूम पड़ा है। 84 का चक्र कैसे फिरता है। हम आत्मा को स्व का दर्शन हुआ है अर्थात् इस चक्र का नॉलेज हुआ है। उठते, बैठते, चलते तुमको यह नॉलेज बुद्धि में रखना है। बाप नॉलेज पढ़ाते हैं। यह रूहानी नॉलेज बाप भारत में ही आकर देते हैं। कहते हैं ना - हमारा भारत। वास्तव में हिन्दुस्तान कहना तो रांग है। तुम जानते हो भारत जब स्वर्ग था तो सिर्फ हमारा ही राज्य था और कोई धर्म नहीं था। न्यु वर्ल्ड थी। नई देहली कहते हैं ना। देहली का नाम असल देहली नहीं था, परिस्तान कहते थे। अभी तो नई देहली और पुरानी देहली कहते हैं फिर न पुरानी, न नई देहली होगी। परिस्तान कहा जायेगा। दिल्ली को कैपीटल कहते हैं। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा, और कुछ भी नहीं होगा, हमारा ही राज्य होगा। अभी तो राज्य नहीं है इसलिए सिर्फ कहते हैं हमारा भारत देश है। राजायें तो हैं नहीं। तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान चक्र लगाता है। बरोबर पहले-पहले इस विश्व में देवी-देवताओं का राज्य था और कोई राज्य नहीं था। जमुना का किनारा था, उसको परिस्तान कहा जाता था। देवताओं की कैपीटल देहली ही रही है, तो सभी को कशिश होती है। सबसे बड़ी भी है। एकदम सेन्टर (बीच) है।

मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं पाप तो जरूर हुए हैं, पाप आत्मा बन गये हैं। सतयुग में होते हैं पुण्य आत्मायें। बाप ही आकर पावन बनाते हैं जिसकी तुम शिव जयन्ती भी मनाते हो। अब जयन्ती अक्षर तो सबसे लगता है इस-लिए इनको फिर शिव रात्रि कहते हैं। रात्रि का अर्थ तो तुम्हारे सिवाए और कोई समझ न सकें। अच्छे-अच्छे विद्वान आदि कोई भी नहीं जानते कि शिवरात्रि क्या है तो मनावें क्या! बाप ने समझाया है रात्रि का अर्थ क्या है? यह जो 5 हज़ार वर्ष का चक्र है उसमें सुख और दु:ख का खेल है, सुख को कहा जाता है दिन, दु:ख को कहा जाता है रात। तो दिन और रात के बीच में आता है संगम। आधाकल्प है सोझरा, आधाकल्प है अन्धियारा। भक्ति में तो बहुत तीक-तीक चलती है। यहाँ है सेकण्ड की बात। बिल्कुल इज़ी है, सहज योग। तुमको पहले जाना है मुक्तिधाम। फिर तुम जीवनमुक्ति और जीवनबन्ध में कितना समय रहे हो, यह तो तुम बच्चों को याद है फिर भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। बाप समझाते हैं योग अक्षर है ठीक परन्तु उन्हों का है जिस्मानी योग। यह है आत्माओं का परमात्मा के साथ योग। सन्यासी लोग अनेक प्रकार के हठयोग आदि सिखाते हैं तो मनुष्य मूँझते हैं। तुम बच्चों का बाप भी है तो टीचर भी है, तो उनसे योग लगाना पड़े ना। टीचर से पढ़ना होता है। बच्चा जन्म लेता है तो पहले बाप से योग होता है फिर 5 वर्ष के बाद टीचर से योग लगाना पड़ता है फिर वानप्रस्थ अवस्था में गुरू से योग लगाना पड़ता है। तीन मुख्य याद रहते हैं। वह तो अलग-अलग होते है। यहाँ यह एक ही बार बाप आकर बाप भी बनते हैं, टीचर भी बनते हैं। वन्डरफुल है ना। ऐसे बाप को तो जरूर याद करना चाहिए। जन्म-जन्मान्तर तीन को अलग-अलग याद करते आये हो। सतयुग में भी बाप से योग होता है फिर टीचर से होता है। पढ़ने तो जाते हैं ना। बाकी गुरू की वहाँ दरकार नहीं रहती क्योंकि सब सद्गति में हैं। यह सब बातें याद करने में क्या तकल़ीफ है! बिल्कुल सहज है। इनको कहा जाता है सहज योग। परन्तु यह है अनकॉमन। बाप कहते हैं मैं यह टैप्रेरी लोन लेता हूँ, सो भी कितना थोड़ा समय लेता हूँ। 60 वर्ष में वानप्रस्थ अवस्था होती है। कहते हैं साठ लगी लाठ। इस समय सबको लाठी लगी हुई है। सब वानप्रस्थ, निर्वाणधाम में जायेंगे। वह है स्वीट होम, स्वीटेस्ट होम। उनके लिए ही कितनी अथाह भक्ति की है। अभी चक्र फिरकर आये हो। मनुष्यों को यह कुछ भी पता नहीं, ऐसे ही गपोड़ा लगा दिया है कि लाखों वर्ष का चक्र है। लाखों वर्ष की बात हो तो फिर रेस्ट मिल न सके। रेस्ट मिलना ही मुश्किल हो जाए। तुमको रेस्ट मिलती है, उसको कहा जाता है साइलेन्स होम, इनकारपोरियल वर्ल्ड। यह है स्थूल स्वीट होम। वह है मूल स्वीट होम। आत्मा बिल्कुल छोटा रॉकेट है, इनसे तीखा भागने वाला कोई होता नहीं। यह तो सबसे तीखा है। एक सेकण्ड में शरीर छूटा और यह भागा, दूसरा शरीर तो तैयार रहता है। ड्रामा अनु-सार पूरे टाइम पर उनको जाना ही है। ड्रामा कितना एक्यूरेट है। इनमें कोई इनएक्यूरेसी है नहीं। यह तुम जानते हो। बाप भी ड्रामा अनुसार बिल्कुल एक्यूरेट टाइम पर आते हैं। एक सेकण्ड का भी फर्क नहीं पड़ सकता है। मालूम कैसे पड़ता है कि इनमें बाप भगवान है। जब नॉलेज देते हैं, बच्चों को बैठ समझाते हैं। शिवरात्रि भी मनाते हैं ना। मैं शिव कब कैसे आता हूँ, वह तुमको तो पता नहीं है। शिवरात्रि, कृष्णरात्रि मनाते हैं। राम की नहीं मनाते क्योंकि फर्क पड़ गया ना। शिवरात्रि के साथ कृष्ण की भी रात्रि मना लेते हैं। परन्तु जानते कुछ भी नहीं। यहाँ है ही आसुरी रावण राज्य। यह समझने की बातें हैं। यह तो है बाबा, बुढ़े को बाबा कहेंगे। छोटे बच्चे को बाबा थोड़ेही कहेंगे। कोई-कोई लव से भी बच्चे को बाबा कह देते हैं। तो उन्हों ने भी कृष्ण को लव से कह दिया है। बाबा तो तब कहा जाता है जब बड़े हो और फिर बच्चे पैदा करते हो। कृष्ण खुद ही प्रिन्स है, उनको बच्चे कहाँ से आये। बाप कहते ही हैं मै बुजुर्ग के तन में आता हूँ। शास्त्रों में भी है परन्तु शास्त्रों की सब बातें एक्यूरेट नहीं होती, कोई-कोई बात ठीक है। ब्रह्मा की आयु माना प्रजापिता ब्रह्मा की आयु कहेंगे। वह तो जरूर इस समय होगा। ब्रह्मा की आयु मृत्युलोक में खत्म होगी। यह कोई अमरलोक नहीं है। इनको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग। यह सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में नहीं हो सकता।

बाप बैठ बताते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो हम बतलाते हैं कि तुम 84 जन्म लेते हो। कैसे? तो भी तुमको पता पड़ गया है। हरेक युग की आयु 1250 वर्ष है और इतने-इतने जन्म लिए हैं। 84 जन्मों का हिसाब है ना। 84 लाख का तो हिसाब हो न सके। इनको कहा जाता है 84 का पा, 84 लाख की तो बात ही याद न आये। यहाँ कितने अपरमअपार दु:ख हैं। कैसे दु:ख देने वाले बच्चे पैदा होते रहते हैं। इसको कहा जाता है घोर नर्क, बिल्कुल छी-छी दुनिया है। तुम बच्चे जानते हो अभी हम नई दुनिया में जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। पाप कट जाएं तो हम पुण्यात्मा बन जायें। अभी कोई पाप नहीं करना है। एक-दो पर काम कटारी चलाना - यह आदि-मध्य-अन्त दु:ख देना है। अभी यह रावण राज्य पूरा होता है। अभी है कलियुग का अन्त। यह महाभारी लड़ाई है अन्तिम। फिर कोई लड़ाई आदि होगी ही नहीं। वहाँ कोई भी यज्ञ रचे नहीं जाते। जब यज्ञ रचते हैं तो उसमें हवन करते हैं। बच्चे अपनी पुरानी सामग्री सब स्वाहा कर देते हैं। अब बाप ने समझाया है यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र शिव को कहा जाता है। रूद्र माला कहते हैं ना। निवृत्तिमार्ग वालों को प्रवृत्ति मार्ग की रसम-रिवाज़ का कुछ भी पता नहीं है। वह तो घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं। नाम ही पड़ा है सन्यास। किसका सन्यास? घरबार का। खाली हाथ निकलते हैं। पहले तो गुरू लोग बहुत परीक्षा लेते हैं, काम कराते हैं। पहले भिक्षा में सिर्फ आटा लेते थे, रसोई नहीं लेते थे। उन्हों को जंगल में ही रहना है, वहाँ कंद-मूल-फल मिलते हैं। यह भी गायन है, जब सतोप्रधान सन्यासी होते हैं तब यह खाते हैं। अभी तो बात मत पूछो, क्या-क्या करते रहते हैं। इसका नाम ही है विशश वर्ल्ड। वह है वाइस-लेस वर्ल्ड। तो अपने को विशश समझना चाहिए ना। बाप कहते हैं सतयुग को कहा जाता है शिवालय, वाइ-सलेस वर्ल्ड। यहाँ तो सब हैं पतित मनुष्य इसलिए देवी-देवता के बदले नाम ही हिन्दू रख दिया है। बाप तो सब बातें समझाते रहते हैं। तुम असुल में हो ही बेहद बाप के बच्चे। वह तो तुम्हें 21 जन्मों का वर्सा देते हैं। तो बाप मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं - जन्म-जन्मान्तर के पाप तुम्हारे सिर पर हैं। पापों से मुक्त होने के लिए ही तुम बुलाते हो। साधू-सन्त आदि सब पुकारते हैं - हे पतित-पावन..... अर्थ कुछ नहीं समझते, ऐसे ही गाते रहते हैं, ताली बजाते रहते हैं। उनसे कोई पूछे - परमात्मा से योग कैसे लगावें, उनसे कैसे मिलें तो कह देंगे वह तो सर्वव्यापी है। क्या यही रास्ता बताते हैं! कह देते वेद-शास्त्र पढ़ने से भगवान मिलेगा। परन्तु बाप कहते हैं - मैं हर 5 हजार वर्ष के बाद ड्रामा के प्लैन अनुसार आता हूँ। यह ड्रामा का राज़ सिवाए बाप के और कोई नहीं जानते। लाखों वर्ष का ड्रामा तो हो ही नहीं सकता। अब बाप समझाते हैं यह 5 हज़ार वर्ष की बात है। कल्प पहले भी बाबा ने कहा था कि मनमनाभव। यह है महामंत्र। माया पर जीत पाने का मंत्र है। बाप ही बैठ अर्थ समझाते हैं। दूसरा कोई अर्थ नहीं समझाते। गाया भी जाता है ना सर्व का सद्गति दाता एक। कोई मनुष्य तो हो नहीं सकता। देवताओं की भी बात नहीं है। वहाँ तो सुख ही सुख है, वहाँ कोई भक्ति नहीं करते। भक्ति की जाती है भगवान से मिलने के लिए। सतयुग में भक्ति होती नहीं क्योंकि 21 जन्मों का वर्सा मिला हुआ है। तब गाया भी जाता है दु:ख में सिमरण...... यहाँ तो अथाह दु:ख हैं। घड़ी-घड़ी कहते हैं भगवान रहम करो। यह कलियुगी दु:खी दुनिया सदैव नहीं रहती। सतयुग-त्रेता पास्ट हो गये हैं, फिर होंगे। लाखों वर्ष की तो बात भी याद नहीं रह सकती है। अब बाप तो सारी नॉलेज देते हैं, अपना परिचय भी देते हैं और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ भी समझाते हैं। 5 हज़ार वर्ष की बात है। तुम बच्चों को ध्यान में आ गया है। अभी तो पराये राज्य में हो। तुमको अपना राज्य था। यहाँ तो लड़ाई से अपना राज्य लेते हैं, हथियारों से, मारामारी से अपना राज्य लेते हैं। तुम बच्चे तो योगबल से अपना राज्य स्थापन कर रहे हो। तुम्हें सतोप्रधान दुनिया चाहिए। पुरानी दुनिया खत्म हो नई दुनिया बनती है, इसको कहा जाता है कलियुग पुरानी दुनिया। सतयुग है नई दुनिया। यह भी किसको पता नहीं है। सन्यासी कह देते यह आपकी कल्पना है। यहाँ ही सतयुग है, यहाँ ही कलियुग है। अब बाप बैठ समझाते हैं एक भी ऐसा नहीं है जो बाप को जानते हो। अगर कोई जानता होता तो परिचय देता। सतयुग-त्रेता क्या चीज है, किसको समझ में थोड़ेही आता है। तुम बच्चों को बाप अच्छी रीति समझाते रहते हैं। बाप ही सब कुछ जानते हैं, जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। ज्ञान का सागर, सुख का सागर है। उनसे ही हमको वर्सा मिलना है। बाप नॉलेज में आप समान बनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह पापों से मुक्त होने का समय है इसलिए अभी कोई पाप नहीं करना है। पुरानी सब सामग्री इस रूद्र यज्ञ में स्वाहा करनी है।

2) अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बाप, टीचर के साथ-साथ सतगुरू को भी याद करना है। स्वीट होम में जाने के लिए आत्मा को सतोप्रधान (पावन) बनाना है।

वरदान:- समय को शिक्षक बनाने के बजाए बाप को शिक्षक बनाने वाले मास्टर रचयिता भव
कई बच्चों को सेवा का उमंग है लेकिन वैराग्य वृत्ति का अटेन्शन नहीं है, इसमें अलबेलापन है। चलता है...होता है...हो जायेगा...समय आयेगा तो ठीक हो जायेगा...ऐसा सोचना अर्थात् समय को अपना शिक्षक बनाना। बच्चे बाप को भी दिलासा देते हैं - फिकर नहीं करो, समय पर ठीक हो जायेगा, कर लेंगे। आगे बढ़ जायेंगे। लेकिन आप मास्टर रचयिता हो, समय आपकी रचना है। रचना मास्टर रचयिता का शिक्षक बनें यह शोभा नहीं देता।
स्लोगन:- 
बाप की पालना का रिटर्न है - स्व को और सर्व को परिवर्तन करने में सहयोगी बनना।
 

 

Thursday, September 12, 2019

12-09-2019 प्रात:मुरली

12-09-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अन्दर में दिन रात बाबा-बाबा चलता रहे तो अपार खुशी रहेगी, बुद्धि में रहेगा बाबा हमें कुबेर का खजाना देने आये हैं''
प्रश्नः-
बाबा किन बच्चों को ऑनेस्ट (ईमानदार) फूल कहते हैं? उनकी निशानी सुनाओ?
उत्तर:-
ऑनेस्ट फूल वह है जो कभी भी माया के वश नहीं होते हैं। माया की खिटपिट में नहीं आते हैं। ऐसे ऑनेस्ट फूल लास्ट में आते भी फास्ट जाने का पुरुषार्थ करते हैं। वह पुरानों से भी आगे जाने का लक्ष्य रखते हैं। अपने अवगुणों को निकालने के पुरुषार्थ में रहते हैं। दूसरों के अवगुणों को नहीं देखते।
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। वह हुआ रूहानी बाप क्योंकि शिव तो सुप्रीम रूह है ना, आत्मा है ना। बाप तो रोज़-रोज़ नई-नई बातें समझाते रहते हैं। गीता सुनाने वाले सन्यासी आदि बहुत हैं। वह बाप को याद कर न सकें। 'बाबा' अक्षर कभी उनके मुख से निकल न सके। यह अक्षर है ही गृहस्थ मार्ग वालों के लिए। वह तो हैं निवृत्ति मार्ग वाले। वह ब्रह्म को ही याद करते हैं। मुख से कभी शिवबाबा नहीं कहेंगे। भल तुम जांच करो। समझो बड़े-बड़े विद्वान सन्यासी चिन्मियानंद आदि गीता सुनाते हैं, ऐसे नहीं कि वह गीता का भगवान कृष्ण को समझ उनसे योग लगा सकते हैं। नहीं। वह तो फिर भी ब्रह्म के साथ योग लगाने वाले ब्रह्म ज्ञानी वा तत्व ज्ञानी हैं। कृष्ण को कभी कोई बाबा कहे, यह हो नहीं सकता। तो कृष्ण गीता सुनाने वाला बाबा तो नहीं ठहरा ना। शिव को सब बाबा कहते हैं क्योंकि वह सब आत्माओं का बाप है। सब आत्मायें उनको पुकारती हैं - परमपिता परमात्मा। वह है सुप्रीम, परम है क्योंकि परमधाम में रहने वाला है। तुम भी सब परमधाम में रहते हो परन्तु उनको परम आत्मा कहते हैं। वह कभी पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। खुद कहते हैं मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है। ऐसे कोई रथ में प्रवेश कर तुमको विश्व का मालिक बनने की युक्ति बताये, यह और कोई हो नहीं सकता। तब बाप कहते हैं - मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे कोई भी नहीं जानते। मैं जब अपना परिचय दूँ तब जान सकते हैं। यह ब्रह्म को अथवा तत्वों को मानने वाले, कृष्ण को फिर अपना बाप कैसे मानेंगे। आत्मायें तो सब बच्चे ठहरे ना। कृष्ण को सब पिता कैसे कहेंगे। ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि कृष्ण सबका बाप है। हम सब ब्रदर्स हैं। ऐसे भी नहीं कृष्ण सर्वव्यापी है। सब कृष्ण थोड़ेही हो सकते हैं। अगर सब कृष्ण हों तो उनका बाप भी चाहिए। मनुष्य बहुत भूले हुए हैं। नहीं जानते हैं तब तो कहते हैं मुझे कोटों में कोई जानते हैं। कृष्ण को तो कोई भी जान लेंगे। सब विलायत वाले भी उनको जानते हैं। लॉर्ड कृष्णा कहते हैं ना। चित्र भी हैं, असली चित्र तो हैं नहीं। भारतवासियों से सुनते हैं, इनकी पूजा बहुत होती है तो फिर गीता में यह लिख दिया है - कृष्ण भगवान। अब भगवान को भला लॉर्ड कहा जाता है क्या। लॉर्ड कृष्णा कहते हैं ना। लॉर्ड का टाइटिल वास्तव में बड़े आदमी को मिलता है। वह तो सबको देते रहते हैं, इसको कहा जाता है अन्धेर नगरी....। कोई भी पतित मनुष्य को लॉर्ड कह देते हैं। कहाँ यह आज के पतित मनुष्य, कहाँ शिव वा श्रीकृष्ण! बाप कहते हैं जो तुमको ज्ञान देता हूँ वह फिर गुम हो जाता है। मैं ही आकर नई दुनिया स्थापन करता हूँ। ज्ञान भी मैं अभी ही देता हूँ। मैं जब ज्ञान दूँ तब ही बच्चे सुनें। मेरे बिगर कोई सुना न सके। जानते ही नहीं।
क्या सन्यासी शिवबाबा को याद कर सकते हैं? वह कह भी नहीं सकते कि निराकार गॉड को याद करो। कब सुना है? बहुत पढ़े-लिखे मनुष्य भी समझते नहीं हैं। अब बाप समझाते हैं कृष्ण भगवान नहीं। मनुष्य तो उनको ही भगवान कहते रहते हैं। कितना फ़र्क हो गया है। बाप तो बच्चों को बैठ पढ़ाते हैं। वह बाप, टीचर, गुरू भी है। शिवबाबा सबको बैठ समझाते हैं। न समझने कारण त्रिमूर्ति में शिव रखते ही नहीं। ब्रह्मा को रखते हैं, जिसको प्रजापिता ब्रह्मा कहते हैं। प्रजा को रचने वाला। परन्तु उनको भगवान नहीं कहेंगे। भगवान प्रजा नहीं रचते हैं। भगवान के तो सब आत्मायें बच्चे हैं। फिर कोई द्वारा प्रजा रचते हैं। तुमको किसने एडाप्ट किया? ब्रह्मा द्वारा बाप ने एडाप्ट किया। ब्राह्मण जब बनेंगे तब ही तो देवता बनेंगे। यह बात तो तुमने कभी सुनी नहीं है। प्रजापिता का भी जरूर पार्ट है। एक्ट चाहिए ना। इतनी प्रजा कहाँ से आयेगी। कुख वंशावली भी तो हो न सके। वह कुख वंशावली ब्राह्मण कहेंगे - हमारा सरनेम है ब्राह्मण। नाम तो सबका अलग-अलग है। प्रजापिता ब्रह्मा तो कहते ही तब हैं जब शिवबाबा इनमें प्रवेश करें। यह नई बातें हैं। बाप खुद कहते हैं - मुझे कोई जानते नहीं, सृष्टि चक्र को भी नहीं जानते। तब तो ऋषि-मुनि सब नेती-नेती कह गये हैं। न परमात्मा को, न परमात्मा की रचना को जानते हैं। बाप कहते हैं जब मैं आकर अपना परिचय दूँ तब ही जानें। इन देवताओं को वहाँ यह पता थोड़ेही पड़ता है - हमने यह राज्य कैसे पाया? इनमें ज्ञान होता ही नहीं। पद पा लिया फिर ज्ञान की दरकार नहीं। ज्ञान चाहिए ही सद्गति के लिए। यह तो सद्गति को पाये हुए हैं। यह बड़ी समझने की गुह्य बातें हैं। समझदार ही समझें। बाकी जो बूढ़ी-बूढ़ी मातायें हैं, उनमें इतनी बुद्धि तो है नहीं, वह भी ड्रामा प्लैन अनुसार हर एक का अपना पार्ट है। ऐसे तो नहीं कहेंगे - हे ईश्वर बुद्धि दो। सबको एक जैसी बुद्धि हम दें तो सब नारायण बन जायेंगे। सब एक-दो के ऊपर गद्दी पर बैठेंगे क्या! हाँ, एम ऑब्जेक्ट है यह बनने की। सब पुरुषार्थ कर रहे हैं नर से नारायण बनने का। बनेंगे तो पुरुषार्थ अनुसार ना। अगर सब हाथ उठायें - हम नारायण बनेंगे तो बाप को अन्दर में हंसी आयेगी ना। सब एक जैसे बन कैसे सकते! नम्बरवार तो होते हैं ना। नारायण दी फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड। जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड..... होते हैं ना। भल एम ऑब्जेक्ट यह है, परन्तु खुद समझ सकते हैं ना - चलन ऐसी है तो क्या पद पायेंगे? पुरुषार्थ तो जरूर करना है। बाबा नम्बरवार फूल ले आते हैं, नम्बरवार फूल दे भी सकते हैं परन्तु ऐसे करते नहीं। फंक हो जायेंगे। बाबा जानते हैं, देखेंगे कौन जास्ती सर्विस कर रहे हैं, यह अच्छा फूल है। पीछे नम्बरवार तो होते ही हैं। बहुत पुराने भी बैठे हैं परन्तु उनमें नये-नये, बड़े-बड़े अच्छे फूल हैं। कहेंगे यह नम्बरवन ऑनेस्ट फूल है, कोई खिटपिट, ईर्ष्या आदि इनमें नहीं हैं। बहुतों में कुछ न कुछ खामियां जरूर हैं। सम्पूर्ण तो कोई को कह नहीं सकते। सोलह कला सम्पूर्ण बनने के लिए बहुत मेहनत चाहिए। अभी कोई सम्पूर्ण बन न सके। अभी तो अच्छे-अच्छे बच्चों में भी ईर्ष्या बहुत है। खामियां तो हैं ना। बाप जानते हैं सब किस-किस प्रकार का पुरुषार्थ कर रहे हैं। दुनिया वाले क्या जानें। वह तो कुछ समझते नहीं। बहुत थोड़े समझते हैं। गरीब झट समझ जाते हैं। बेहद का बाप आया हुआ है पढ़ाने। उस बाप को याद करने से हमारे पाप कट जायेंगे। हम बाप के पास आये हैं, बाबा से नई दुनिया का वर्सा जरूर मिलेगा। नम्बरवार तो होते ही हैं - 100 से लेकर एक नम्बर तक परन्तु बाप को जान लिया, थोड़ा भी सुना तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे। 21 जन्मों के लिए स्वर्ग में आना कोई कम है क्या! ऐसे तो नहीं, कोई मरता है तो कहेंगे 21 जन्म के लिए स्वर्ग में गया। स्वर्ग है ही कहाँ। कितनी मिसअन्डरस्टैंडिंग कर दी है। बड़े-बड़े अच्छे लोग भी कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। स्वर्ग कहते किसको हैं? अर्थ कुछ भी नहीं समझते। यह सिर्फ तुम ही जानते हो। हो तुम भी मनुष्य, परन्तु तुम ब्राह्मण बने हो। अपने को ब्राह्मण ही कहलाते हो। तुम ब्राह्मणों का एक बापदादा है। तो सन्यासियों से भी तुम पूछ सकते हो कि यह जो महावाक्य वा भगवानुवाच है कि देह सहित देह के सब धर्म छोड़ मामेकम् याद करो - क्या यह कृष्ण कहते हैं मामेकम् याद करो? तुम कृष्ण को याद करते हो क्या? कभी नहीं हाँ कहेंगे। वहाँ ही प्रसिद्ध हो जाए। परन्तु बिचारी अबलायें जाती हैं, वह क्या जानें। वह अपने फालोआर्स के आगे क्रोधित हो जाते हैं। दुर्वाषा का नाम भी है ना। उनमें अहंकार बहुत रहता है। फालोआर्स हैं ढेर। भक्ति का राज्य है ना। उनसे पूछने की कोई में ताकत नहीं रहती है। नहीं तो उनको कह सकते हैं तुम तो शिवबाबा की पूजा करते हो। अब भगवान किसको कहेंगे? क्या ठिक्कर भित्तर में भगवान है? आगे चल इन सब बातों को समझेंगे। अभी नशा कितना है। हैं सभी पुजारी। पूज्य नहीं कहेंगे।
बाप कहते हैं मेरे को विरला कोई जानते हैं। मैं जो हूँ, जैसा हूँ - तुम बच्चों में भी विरले कोई एक्यूरेट जानते हैं। उनको अन्दर में बहुत खुशी रहती है। यह तो समझते हैं ना - बाबा ही हमको स्वर्ग की बादशाही देते हैं। कुबेर के खजाने मिलते हैं। अल्लाह अवलदीन का भी खेल दिखाते हैं ना। ठका करने से खजाना निकल आया। बहुत खेल दिखाते हैं - खुदा दोस्त बादशाह क्या करते थे, उस पर भी कहानी है। पुल पर जो आता था उनको एक दिन की राजाई दे रवाना कर देता था। यह सब हैं कहानियां। अभी बाप समझाते हैं खुदा तुम बच्चों का दोस्त है, इनमें प्रवेश कर तुम्हारे साथ खाते पीते हैं, खेलते भी हैं। शिवबाबा का और ब्रह्मा बाबा का रथ एक ही है, तो जरूर शिवबाबा भी खेल तो सकते होंगे ना। बाप को याद कर खेलते हैं तो दोनों इसमें हैं। हैं तो दो ना - बाप और दादा। परन्तु कोई भी समझते नहीं हैं, कहते हैं रथ पर आये, तो वह फिर घोड़े-गाड़ी का रथ बना दिया है। ऐसे भी नहीं कहेंगे कृष्ण में शिवबाबा बैठ ज्ञान देते हैं। वह फिर कह देते हैं कृष्ण भगवानुवाच। ऐसे तो नहीं कहते ब्रह्मा भगवानुवाच। नहीं। यह है रथ। शिव भगवानुवाच। बाप बैठ तुम बच्चों को अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का परिचय, ड्युरेशन बताते हैं। जो बात कोई भी नहीं जानते। सेन्सीबुल जो होंगे वह बुद्धि से काम लेंगे। सन्यासियों को तो सन्यास करना है। तुम भी शरीर सहित सब कुछ सन्यास करते हो, जानते हो यह पुरानी खल है, हमको तो अब नई दुनिया में जाना है। हम आत्मा यहाँ की रहने वाली नहीं हैं। यहाँ पार्ट बजाने आये हैं। हम रहवासी परमधाम के हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो वहाँ निराकारी झाड़ कैसा है। सभी आत्मायें वहाँ रहती हैं, यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। कितनी करोड़ों जीव आत्मायें हैं। इतने सब कहाँ रहते हैं? निराकारी दुनिया में। बाकी यह सितारे तो आत्मा नहीं हैं। मनुष्यों ने तो इन सितारों को भी देवता कह दिया है। परन्तु वह कोई देवता है नहीं। ज्ञान सूर्य तो हम शिवबाबा को कहेंगे। तो उनको फिर देवता थोड़ेही कहेंगे। शास्त्रों में तो क्या-क्या बातें लिख दी हैं। यह है सब भक्ति मार्ग की सामग्री। जिससे तुम नीचे ही गिरते आये हो। 84 जन्म लेंगे तो जरूर नीचे उतरेंगे ना। अभी यह है आइरन एजड दुनिया। सतयुग को कहा जाता है गोल्डन एजड दुनिया। वहाँ कौन रहते थे? देवतायें। वह कहाँ गये - यह किसको भी पता नहीं है। समझते भी हैं पुनर्जन्म लेते हैं। बाप ने समझाया है पुनर्जन्म लेते-लेते देवता से बदल हिन्दू बन गये हैं। पतित बने हैं ना। और किसका भी धर्म बदली नहीं होता। इन्हों का धर्म क्यों बदली होता है - किसको पता नहीं। बाप कहते हैं धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो गये हैं। देवी-देवता थे तो पवित्र जोड़े थे। फिर रावण राज्य में तुम अपवित्र बन गये हो। तो देवी-देवता कहला न सके इसलिए नाम पड़ गया है हिन्दू। देवी-देवता धर्म कृष्ण भगवान ने नहीं स्थापन किया। जरूर शिवबाबा ने ही आकर किया होगा। शिव जयन्ती शिवरात्रि भी मनाई जाती है परन्तु उसने क्या आकर किया, यह किसको भी पता नहीं है। एक शिव पुराण भी है। वास्तव में शिव की एक गीता ही है, जो शिवबाबा ने सुनाई है, और कोई शास्त्र है नहीं। तुम कोई भी हिंसा नहीं करते हो। तुम्हारा कोई शास्त्र तो बनता नहीं। तुम नई दुनिया में चले जाते हो। सतयुग में कोई भी शास्त्र गीता आदि होता नहीं। वहाँ कौन पढ़ेंगे। वह तो कह देते यह वेद-शास्त्र आदि परम्परा से चले आते हैं। उन्हों को कुछ भी पता नहीं है। स्वर्ग में कोई शास्त्र आदि होता नहीं। बाप ने तो देवता बना दिया, सबकी सद्गति हो गई फिर शास्त्र पढ़ने की क्या दरकार है। वहाँ शास्त्र होते नहीं। अभी बाप ने तुम्हें ज्ञान की चाबी दी है, जिससे बुद्धि का ताला खुल गया है। पहले ताला एकदम बन्द था, कुछ भी समझते नहीं थे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी ईर्ष्या आदि नहीं करनी है। खामियां निकाल सम्पूर्ण बनने का पुरुषार्थ करना है। पढ़ाई से ऊंच पद पाना है।
2) शरीर सहित सब कुछ सन्यास करना है। किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करनी है। अहंकार नहीं रखना है
वरदान:-
मेरे को तेरे में परिवर्तन कर बेफिक्र बादशाह बनने वाले खुशी के खजाने से भरपूर भव
जिन बच्चों ने सब कुछ तेरा किया वही बेफिकर रहते हैं। मेरा कुछ नहीं, सब तेरा है...जब ऐसा परिवर्तन करते हो तब बेफिकर बन जाते हो। जीवन में हर एक बेफिकर रहना चाहता है, जहाँ फिकर नहीं वहाँ सदा खुशी होगी। तो तेरा कहने से, बेफिकर बनने से खुशी के खजाने से भरपूर हो जाते हो। आप बेफिकर बादशाहों के पास अनगिनत, अखुट, अविनाशी खजाने हैं जो सतयुग में भी नहीं होंगे।
स्लोगन:-
खजानों को सेवा में लगाना अर्थात् जमा का खाता बढ़ाना।
 

Monday, April 30, 2018

Soul Sustenance and Message of the day 30-04-18

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Soul Sustenance 30-04-2018
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Reliving The Memories Of The Past (Part 1) 

Have you ever spent a complete day thinking about events that have taken place a day or a month or a year ago? Do you know that the thinking capabilities of the mind are overused when we create thoughts of an already passed past? We forget that a positive future can be rebuilt by simply focusing on the present circumstances and doing the best in making it the best. A very common habit that each one of us holds inside us is of reopening events that have already folded in the reel of life and mixing them with the current state of affairs. We then create a negative future because our perceptions of current situations get influenced negatively by doing that. 

Remaining focused on the present is sometimes seen as over-positive thinking by some and also seen as remaining disconnected from the past. The past is very much the truth of your life. So, a balance has to be made between being forward looking i.e. taking care that the past problems do not re-occur in the future. At the same time we take care that we do not worry about that. There is a fine difference between concern and worry. While remaining concerned does involve thinking about the past, on the other hand, worry means the same but there is a difference. In the case of worry, thinking exceeds the necessary thought level, crosses it and touches the unnecessary. Sometimes it even exceeds that and becomes negative. On the other hand, remaining concerned means your thoughts remain limited to positive and necessary. At the same time you take the right action to prevent the past mistakes from happening again. Also, one who is concerned and not worried while remembering the past, will use the past as a stepping stone to enter a future which is free from the influence of negative happenings of the past. 

(To be continued tomorrow …) 

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Message for the day 30-04-2018
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To be free from weakness means to have the power to mould. 

Expression:When there is a weakness, it becomes difficult to mould according to the needs of the situation. Weakness creates hardness and rigidity not allowing the situations to create internal beauty. So the one who is constantly working with one’s own weakness finds it difficult to stop the negativity from being expressed immediately. The weakness is revealed inspite of making effort not to and there is unpleasantness created. 

Experience: To have the ability to mould means to become real gold. I become as flexible and beautiful as pure gold, which is ready to take beautiful shapes when it comes under the influence of the heat of the situation. So I have no hard feelings for having to adjust, but I am able to enjoy the beauty I create and the joy I spread. 


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris

Soul Sustenance and Message of the day 29-04-18

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Soul Sustenance 29-04-2018
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Crystalizing Our Dreams into Reality (Part 2) 

Continuing from yesterday’s message, we have to know what we want to create in our lives that we care about. This has to be manifested very clearly in our minds. If we want to become mentally strong, we also have to become responsible for what we desire, and what we don’t and make choices accordingly. Just like a flower, in the preparation of her beauty, chooses her colours with the greatest care. She adjusts her petals one by one. It is only in the full radiance of her beauty that she wishes to appear. And then one morning, exactly at sunrise, she suddenly shows herself. In the same manner, our inner mental preparation done with care will create beautiful outer realities for us. While it’s very important to have conviction in our values, it’s also important to be accepting others and enhancing our inner being. Else we may find ourselves alone at some point of time. Hence, honesty with humility, along with unconditional acceptance is also important. 

Souls are capable of love, joy, blissfulness and compassion. All that we are seeking right now is pleasantness within and around us. If we find it in our mind, we call it peace. In relationships, it becomes love and compassion. And in energy, it becomes blissfulness. This is all that a soul is looking for. The ability of a human soul to stand on its conviction is immense. It is the World Drama’s plan to decide what’s possible and what’s impossible and God is also with us at every step. We, as souls, have to strive for our dreams. We should never use the past experience to decide on what can happen tomorrow. Meditation is all about transforming yourself from body consciousness to spiritual or soul consciousness; not in search of the divine, but a journey towards becoming an embodiment of divinity. If we keep the doors open to this dimension of spiritual thought, and realize that the source of all positive creation is within us, it will transform into a power that will create reality out of our thoughts.

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Message for the day 29-04-2018
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Feelings change intentions, thus changing actions too. 

Expression:When there are negative feelings like jealousy or hatred towards another person, those feelings naturally create misunderstanding. Even if the other person has a good feeling while doing something, a negative intention is attributed and this naturally changes one’s own behaviour or response making it negative too. 

Experience: When there is the slightest bit of negative feeling within me for someone, it naturally creates further negativity from others too. I find everything I come across to be negative, like the one who wears coloured glasses sees everything to be of that particular colour. 


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris

Soul Sustenance and Message of the day 28-04-18

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Soul Sustenance 28-04-2018
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Crystalizing Our Dreams into Reality (Part 1) 

Our dreams and aspirations are like little seeds, invisible to the outer world. They could be different things for different people, but you alone will have your dreams as no one else has them. The seeds sleep deep in the heart of the earth's darkness, until someone among them is picked up with the desire to awaken. Then this little seed stretches itself and begins, shyly at first, to push a charming little twig upwards towards the sun. In the same manner, everything that exists today in this world was at first created in our minds essentially. Learning the art of creating thoughts in our minds, our inner world, very consciously is very important. Otherwise what happens in the outer world would not be anything more than purely accidental. 

An organized mind is one which is away from unnecessary movements, absorbed in its originally created pure thoughts. Such a mind then organizes the whole system. Our body, mind and fundamental life energies are then all organized in one direction. This alignment has to be kept focused in one direction for some time – the direction of our dream, which we want to achieve and fulfill. Besides that, it is also important to have faith in the Supreme Soul. If we have a strong desire to achieve something, but also keep thinking about the limitations, which acts as an obstacle to the fulfillment of the desires, it creates internal conflict. A thought is a powerful vibration, and faith is a means to reduce negative thoughts. This resonance of positive thoughts is fundamental to success. 

(To be continued tomorrow …) 

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Message for the day 28-04-2018
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An elevated consciousness brings speciality to the task being done. 

Expression:As is the consciousness, so is the feeling behind the task, and therefore its quality. Just to perform action and finish the tasks at hand does not bring speciality and accuracy as much as it should. When the consciousness is special, that means before a task is performed there is a thought given both to the task and to the self, there is speciality revealed in the task. 

Experience: When I am able to start each task with a special consciousness, like “I am victorious”, or “I am powerful” or “this task is for the benefit of all”, I am able to experience the speciality of doing the task. I am also able to increase my state of self-respect, whatever the task or however simple it maybe. 



In Spiritual Service,
Brahma Kumaris

Soul Sustenance and Message of the day 27-04-18

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Soul Sustenance 27-04-2018
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5 Steps To Becoming A Perfect Angel (Part 3) 

4. Keep A Daily Chart For Your Progress - The key to perfection is self-observation and under the eye of self-observation, weakness stop existing. So, keeping a daily mental chart about your self-progress is a very important key to becoming a beautiful person without any imperfections. E.g. I become angry very easily. If this afternoon I observe myself and make a note in my mind that I have been very peaceful and loveful since the morning and will continue to behave in the same anger-free manner for the rest of the day, it makes me more careful. Such a mental chart of regular progress over many days, makes us spiritual engineers who construct bridges of goodness that help us reach our desired stage of perfect human beings easily. 

5. Give A Gift To Everyone You Meet – The best way to become a beautiful human being, who does not make any mistakes at the level of the personality is gifting a virtue, a kind word, a lovely smile, a warm handshake, a caring hug to people you meet. When you make everyone richer with your love, joy and cheerfulness, they will return the same to you and you will become further richer. Spiritually rich people with the wealth of every virtue in their heart are created by donating that wealth to all. Also, the more others take this wealth from us at all times, the more we become careful that we do not make mistakes that reduce this wealth in anyway. So, take these 5 steps to becoming a perfect angel! Start the journey today and keep enjoying it! 

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Message for the day 27-04-2018
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To be free from worry means to have the power to change negative into positive. 

Expression:The ones who are free from worry change that which is bad into something good, because the state of mind is calm. The one with a calm state of mind is able to think creatively and see very clearly even beyond the situation. So there is the ability to transform the seemingly negative situation into something very positive. So there is clear decision-making and quick action. There is also no time wasted. 

Experience: When I am free from worry, I constantly remain satisfied for having seen the positive and finding the solutions immediately instead of looking at the problem and worrying over it. This internal silence gives the feeling of power, which naturally enables transformation in a second and only the goodness is absorbed. 


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris

Soul Sustenance and Message of the day 26-04-18

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Soul Sustenance 26-04-2018
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5 Steps To Becoming A Perfect Angel (Part 2) 

2. Remember God Is Watching You - The best way to start becoming perfect is to know and remember that our spiritual parent, the soul’s Father and Mother is watching us and always wants us to imbibe positive qualities. This is what even any physical parent would want from his or her child. The child should become beautiful within and not just on the outside in terms of looks and personality. Also, as a teacher, God is watching us. He wants us to excel in different ways, as someone who gives respect and gets respect, who makes others content and others are also content with and also as someone who radiates goodness to others, in every sphere of life. Thirdly, as a Guide, God is watching us and wants to be a perfect example of the right way of living. Others should get inspired by how we lead our lives. As a friend, God wants us to hold His hand and show the world how true Godly companionship is the need of the hour. It is the key to remaining light and blissful, when surrounded by life’s pressures of the physical body, wealth, role and relationships. 

3. Remind Yourself You Are On The World Stage - We are all actors of the world and our every act is like a performance in the eyes of the world. Remember even every thought and feeling of yours is constantly being felt and perceived by people around you. It’s as if you are on a stage and just like you notice everything that others do, others are also doing the same. When we remain in this actor consciousness, we will see our every action with greater respect and responsibility and not be careless in the way we present ourselves to people. Also, the slogan that - What we do, others will also see and do the same - will become a positive reality on our lives. 

(To be continued tomorrow …) 

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Message for the day 26-04-2018
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True help is to help people discover their own specialities. 

Expression:When others' negativities or weaknesses are perceived, it is essential to look at their positivity or specialities too. This will naturally bring love and positivity in the relationship and there will be an encouragement of that positivity. So even if that person has no recognition or has not been using his speciality, an encouragement of it by others will naturally enable him to begin to use it. 

Experience: Making others aware of their specialities and subtly encouraging them to use these specialities is a great help that I can do for others. When I am able to give this unique help and cooperation, I not only find benefit for others, but I am also able to get the good wishes of others. Even others naturally become positive with my positive attitude. 


In Spiritual Service,
Brahma Kumaris